देहरादून: आरटीआई में इस बात का खुलासा हुआ है कि नशा मुक्ति केन्द्रों में इंसानों के साथ जानवरों सा सलूक किया जाता है। आपको बता दें कि नशा छुड़ाने के नाम पर चल रहे दून के नशा मुक्ति केंद्र किसी यातना गृह से कम नहीं हैं। यहां न तो पर्याप्त सुविधाएं हैं और न ही सुरक्षा की पुख्ता व्यवस्था। उस पर कई नशा मुक्ति केंद्र सिर्फ एक कमरे में चल रहे हैं और इस एक कमरे में 35 से 40 व्यक्तियों को भेड़.बकरियों की तरह रखा जा रहा है। नशा मुक्ति केंद्रों की यह स्याह हकीकत सूचना के अधिकार (आरटीआइ) के तहत मांगी गई जानकारी में सामने आई।
दून के अधिवक्ता शिवा वर्मा ने मुख्य चिकित्सा अधिकारी से जिले में संचालित हो रहे नशा मुक्ति केंद्रों को लेकर विभिन्न बिंदुओं पर जानकारी मांगी थी।अधिवक्ता शिवा वर्मा ने रविवार को दर्शन लाल चौक स्थित अपने कार्यालय में पत्रकारों से वार्ता में बताया कि उक्त आरटीआइ आवेदन के जवाब में अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी की ओर से बताया गया है कि इन केंद्रों में नशा छुड़वाने के लिए शुल्क के तौर पर तीन हजार रुपये से लेकर 31 हजार रुपये तक हर माह वसूले जा रहे हैं। लेकिन,किसी भी केंद्र में पर्याप्त स्टाफ तक नहीं है।
कई केंद्र तो ऐसे हैं जहां सीसीटीवी कैमरे,दैनिक रजिस्टर, शिकायती रजिस्टर, विजिटिंग रजिस्टर,सक्षम अधिकारी की टिप्पणी और अन्य विवरण तक उपलब्ध नहीं हैं।अधिवक्ता वर्मा का कहना है कि नशा मुक्ति केंद्रों को कुछ लोगों ने कमाई का माध्यम बना लिया है। पिछले कुछ समय में इन केंद्रों में दुष्कर्म से लेकर भर्ती मरीजों को प्रताड़ित किए जाने और उनकी मौत तक के मामले सामने आ चुके हैं।
बावजूद इसके जिले में नशा मुक्ति केंद्रों पर आज तक किसी भी प्रकार की कार्रवाई नहीं हुई। इस कारण नशा मुक्ति केंद्र मनमाने ढंग से संचालित किए जा रहे हैं।उन्होंने बताया कि उच्च न्यायालय के आदेश पर जिला प्रशासन ने नशा मुक्ति केंद्रों के लिए मानक प्रचालन प्रक्रिया (एसओपी) तो बनाई,लेकिन यह अब तक अस्तित्व में नहीं आ पाई है। इससे भी संचालकों के हौसले बुलंद हैं। उन्होंने कहा कि नशा मुक्ति केंद्रों को लेकर तंत्र की यह अनदेखी कभी भी भारी पड़ सकती है।
Sources: dainik Jagran