
हरिद्वार : गंगा दशहरा पर्व के अवसर पर धर्मनगरी हरिद्वार में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ पड़ी। देश के कोने-कोने से आए हजारों श्रद्धालुओं ने आस्था की डुबकी लगाकर गंगा मां का पूजन किया और पुण्य अर्जित किया। गंगा तटों पर सुबह से ही स्नान करने वालों की लंबी कतारें देखी गईं। श्रद्धालुओं की संख्या इतनी अधिक थी कि हरिद्वार-देहरादून हाईवे पर कई किलोमीटर लंबा जाम लग गया।गंगा दशहरा पर्व, ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन को मां गंगा के धरती पर अवतरण की स्मृति में विशेष रूप से मनाया जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, राजा भगीरथ के प्रयासों से मां गंगा स्वर्ग से पृथ्वी पर अवतरित हुई थीं, ताकि उनके पूर्वजों को मुक्ति मिल सके। तभी से यह दिन विशेष पुण्यदायी माना जाता है।
इस वर्ष गंगा दशहरा पर ज्योतिषीय दृष्टिकोण से अत्यंत दुर्लभ संयोग बना है। दशकों बाद इस पर्व पर हस्त नक्षत्र, सिद्धि योग और व्यतिपात योग एक साथ पड़ रहे हैं। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार इन योगों में गंगा स्नान, दान, व्रत, जप और तप करने से साधारण दिनों की तुलना में कई गुना अधिक पुण्य प्राप्त होता है। यह दिव्य संयोग पर्व की पवित्रता और महत्व को और अधिक बढ़ा देता है।हरिद्वार सहित विभिन्न गंगा तटीय क्षेत्रों में गंगा घाटों पर विशेष पूजा-अर्चना और गंगा आरती का आयोजन किया गया। श्रद्धालुओं ने घाटों पर दीपदान किया और मां गंगा से परिवार, समाज और राष्ट्र के कल्याण की प्रार्थना की। मिट्टी के दीपक में शुद्ध घी से दीप जलाकर श्रद्धा पूर्वक गंगा में प्रवाहित किए गए।
ज्योतिषाचार्य उदय शंकर भट्ट के अनुसार गंगा दशहरा का यह विशेष योग मां गंगा के अवतरण काल से मेल खाता है, इसलिए इसका फल विशेष होता है। उन्होंने बताया कि इस दिन तन-मन की शुद्धि, पापों के नाश और मोक्ष की प्राप्ति के लिए गंगा स्नान और पूजन का विशेष महत्व है।पर्व की महत्ता को देखते हुए साधु-संतों और आचार्यों ने श्रद्धालुओं को यह भी चेताया कि गंगा तटों पर किसी भी प्रकार की अशुद्धता या अपवित्र कार्य नहीं किया जाना चाहिए।
स्नान करते समय साबुन, तेल, कपड़े धोना या प्लास्टिक जैसी अशुद्ध वस्तुएं गंगा में नहीं बहानी चाहिए। यह दिन केवल स्नान का नहीं, बल्कि संयम, तप और शुद्ध आचरण का भी पर्व है।गंगा दशहरा केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति की आत्मा को समर्पित पर्व है। मां गंगा युगों से जीवन, शुद्धता और मोक्ष की अधिष्ठात्री मानी जाती हैं। आज भी उनकी जलधारा न केवल आस्था का प्रतीक है, बल्कि एक सांस्कृतिक उत्तराधिकार भी है, जिसे हर भारतवासी श्रद्धा के साथ निभाता आ रहा है।