
भारत के न्यायिक इतिहास में सोमवार का दिन एक महत्वपूर्ण पड़ाव बन गया, जब न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने देश के 53वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ली। राष्ट्रपति भवन के भव्य दरबार हाल में हुई यह शपथ सिर्फ एक औपचारिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि भारतीय लोकतंत्र की परंपरा, भावनाओं और वैश्विक न्यायिक सहयोग का अनोखा संगम बन गई।
शपथ ग्रहण के तुरंत बाद न्यायमूर्ति सूर्यकांत का अपने परिवार के बुजुर्ग सदस्यों के पैर छूना पूरे समारोह का सबसे मानवीय और भावुक क्षण बना। काले कोट और कानूनी शब्दावली के बीच यह दृश्य भारतीय परंपरा की उस जड़ों को उजागर करता है, जहाँ ऊँचे पदों से अधिक गहरी होती है विरासत और संस्कारों की गरिमा।
इस कार्यक्रम को खास बनाता है दुनिया के कई देशों की शीर्ष न्यायपालिका की उपस्थिति—भूटान, केन्या, मलेशिया, मॉरीशस, नेपाल और श्रीलंका के मुख्य न्यायाधीशों ने समारोह में शामिल होकर सहयोग और न्यायिक कूटनीति के नए युग की ओर इशारा किया। ऐसा दृश्य सामान्यतः अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में देखने को मिलता है, न कि किसी देश के आंतरिक संवैधानिक आयोजन में।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा शपथ दिलाए जाने के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उपराष्ट्रपति सी.पी. राधाकृष्णन, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिर्ला, वरिष्ठ केंद्रीय मंत्री और पूर्व मुख्य न्यायाधीश भी मौजूद रहे। यह उपस्थिति भारतीय न्यायपालिका की संस्था-सशक्त भूमिका की पुष्टि करती है।
हिसार के एक व्यवसायी परिवार में जन्मे न्यायमूर्ति सूर्यकांत का यह मुकाम उन अनेक युवाओं के लिए प्रेरणा है, जो छोटे शहरों से निकलकर देश की सर्वोच्च न्यायिक संस्था में अपनी पहचान बनाना चाहते हैं। उनका अब तक का सफर—पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय से लेकर हिमाचल प्रदेश के मुख्य न्यायाधीश और फिर सुप्रीम कोर्ट तक—न्यायिक सादगी और कठोर पेशेवर क्षमता का उदाहरण माना जाता है।
न्यायमूर्ति भूषण आर. गवई के स्थान पर पदभार संभाल चुके न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने सुप्रीम कोर्ट में अपने कार्यकाल में अनुच्छेद 370, पेगासस, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, नागरिकता और चुनावी सुधार जैसे बड़े मामलों में प्रभावशाली भूमिका निभाई है। यही वजह है कि उनके लगभग 15 महीने के कार्यकाल को न्यायिक सुधार और संवैधानिक व्याख्या के लिहाज से महत्वपूर्ण माना जा रहा है





