बदायूं : परसीमन में बिनावर विधानसभा सीट खत्म होने के बाद जिले के कई रसूखदार और हनक वाले असरदार नेताओं की सियासी जमीन ही मानो बंजर हो गई है । आलम ये रहा कि इनको अपनी सियासत हरी-भरी रखने के लिए इलाके के साथ पार्टियां भी बदलनी पड़ीं लेकिन क्षेत्र की सियासत के लिए दुखद रहा कि यहां से कोई भी सियासत का नुमाईन्दा विधानसभा नहीं पहुंच सका। हैरत की बात ये है कि बिनावर विधानसभा क्षेत्र समाप्त होने के बाद सदन में सीधे तौर पर यहां से चुने जनप्रतिनिधि की आवाज भी नहीं गूंजती।
जैसा कि आप सबक जानते हैं कि बिनावर विधानसभा सीट पर पहला चुनाव 1952 में हुआ था। यहां से गुलड़िया निवासी मुंशी टीकाराम पहले विधायक चुने गए थे । इस सीट पर 1989 तक कांग्रेस का कब्जा रहा। 1985 में कांग्रेस के अबरार अहमद आखिरी बार चुनाव जीते। वर्ष 1989 में पहली बार भाजपा के टिकट पर रामसेवक सिंह पटेल यहां से विधायक चुुने गए थे । कुर्मी बाहुल्य क्षेत्र होने के नाते रामसेवक पटेल बिनावर विधानसभा सीट पर लगातार चार बार भाजपा से ही चुनाव जीतते रहे थे। इस बीच 2002 में बसपा के भूपेंद्र सिंह कुर्मी उर्फ भूपेंद्र दद्दा ने चुनाव जीता रामसेवक पटेल का विजय रथ रोका था। वर्ष 2007 में एक बार फिर रामसेवक बिनावर के विधायक बने। लेकिन वर्ष 2012 का चुनाव आते-आते बिनावर विधानसभा क्षेत्र समाप्त कर दिया गया और इसका शहर विधानसभा क्षेत्र में विलय हो गया।
आपको बता दें कि रामसेवक सिंह के रहते कई बार स्थानीय मुद्दे विधानसभा में गूंजे और उन पर काम भी हुआ। भूपेंद्र सिंह कुर्मी भी पहली बार जब यहां से विधायक बने तो प्रदेश की मायावती सरकार में उनको राज्यमंत्री भी बनाया गया थ। तब उन्होंने भी बिनावर की आवाज सदन में बुलंद की थी । बिनावर विधानसभा क्षेत्र का अस्तित्व खत्म होने पर यहां की आवाज भी सदन में दब सी गई। साथ ही इस इलाके के दूसरे असरदार नेताओं की भी राजनीतिक जमीन खिसकती रही। स्थानीय राजनीति के बड़े नेताओं में शुमार उमेश राठौर को पार्टियां बदलनी पड़ीं। हालांकि अब वह काफी समय से भाजपा में हैं और जिला सहकारी बैंक के चेयरमैन हैं। इसी तरह इलाके के सक्रिय नेताओं में शुमार हरप्रसाद सिंह पटेल, सुरेश चौहान व खालिद परवेज की राजनीति पर भी बुरा असर पड़ा था।
बिनावर विधानसभा क्षेत्र रहते ही यहां सीएचसी बनी, थाने की स्थापना हुई। बहरहाल काफी विकास कार्य भी हुए। बिनावर को ब्लॉक का दर्जा मिलना शेष था। बिनावर विधानसभा सीट ही खत्म हो गई है। ऐसे में अब ज्यादा विकास की उम्मीद नहीं की जा सकती। भोगोलिक स्थिति से बिनावर विधानसभा से जुड़ा एक बड़ा खेत्र देहाती परिवेश से जुड़ा हुआ था। विधानसभा क्षेत्र रहते यहां काफी विकास भी हुआ लेकिन लोगों की कई मांगें आज भी लंबित हैं। अब बिनावर विधानसभा ही अस्तित्व में नहीं है। ऐसे में विधानसभा में यहां की बात भी दमदार ढंग से नहीं पहुंच पा रहीं।
.2007 के विधानसभा चुनाव तक बिनावर राजनीति का केंद्र रहता था। बिनावर विधानसभा क्षेत्र के मतदाता शहर और दातागंज विधानसभा सीट को भी प्रभावित करते थे। बिनावर विधानसभा सीट पर कुर्मी बिरादरी का एक मुश्त वोट बैंक था। विधानसभा खत्म होने के बाद यह वोट बैंक शहर, दातागंज और बिल्सी क्षेत्र में बंट गया।
बिनावर विधानसभा सीट रहने तक राजनीति में कुर्मी बिरादरी का दबदबा रहा था । 2012 में नया परिसीमन लागू होने के बाद बिनावर विधानसभा सीट ही खत्म हो गई। इसके साथ ही कुर्मी बिरादरी का जिले की राजनीति में दबदबा भी पहले की तरह नहीं रहा।जाहिर बात है कि जातीय आधार की राजनीति समाज का नुकसान ही करती है। आज सभी दल जातिवाद की राजनीति को बढ़ावा दे रहे हैं जो गलत है। बहरहाल सदर बिधायक और मंत्री महेश गुप्ता का कहना है कि बिनावर विधानसभा क्षेत्र भले ही खत्म हो गया है पर सदर विधायक के तौर पर हम वहां पर्याप्त काम कराते रहते हैं। राजा वैन के किले के अवशेष का जीर्णोद्धार मुख्यमंत्री की विशेष योजना से 47 लाख रुपये से कराया गया है। साथ ही 12 करोड़ से अन्य विकास कार्य कराए हैं।
.