जैसा कि आपको मालूम है कि कोविड-19 की गाइडलाईन को ध्यान में रखकर चुनाव आयोग ने वर्चुअल रैली और प्रचार प्रसार के निर्देश जारी किये थे। जैसा की आपको मालूम है कि इस वक्त देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे हैंऔर कोरोना की वजह से न तो रैलियां हो रही हैं और न ही रोड शो के जरिये राजनीतिक दल जनता के बीच अपना शक्ति प्रदर्शन ही कर पा रहे हैं।
लिहाजा सारा चुनाव प्रचार डिजिटल प्रारूप में ही सिमट कर रह गया है। गौरतलब है कि चुनाव आयोग की पाबंदी के कारण राजनीतिक दल और नेता इंटरनेट मीडिया के विभिन्न मंचों के जरिये जनता के बीच अपनी पैठ बनाने में लगे हैं। इन्हीं मंचों पर अपनी प्रचार सामग्री को परोसकर पार्टियां चुनाव में अपनी स्थिति को मजबूत करने में जुटी हैं।
मतदाताओं को लुभाने के लिए इस बार राजनीतिक पार्टियां लोकगीतों के रूप में अपने अपने प्रचार गीत बनवाकर इंटरनेट मीडिया के मंचों पर उन्हें साझा करके जनता के दिलोदिमाग पर छा जाने को बेताब हैं।
इस संग्राम में आगे निकल जाने की स्पर्धा लगभग सभी दलों में दिखाई दे रही है। ऐसे में यहां यह सवाल तैर रहा है कि लोकतंत्र के इस चुनावी त्योहार में क्या यह मान लिया जाए कि सभी वोटरो की इंटरनेट मीडिया तक आसान पहुंच है,चुनाव आयोग जब बार-बार अधिकाधिक मतदान की अपील करता नजर आता है तो उसका केवल यही उद्देश्य होता है कि देश और प्रदेश की सरकारों के गठन में सबका मत निहित हो ।
जनता की ज्यादा से ज्यादा भागीदारी के साथ चुनाव में जो जनादेश निकल कर सामने आता है वह सही मायने में समाज का उचित प्रतिनिधित्व माना जाता है। इसीलिए चुनाव के समय विभिन्न कार्यक्रमों के द्वारा अधिक से अधिक मतदान करने के लिए लोगों को जागरूक किया जाता है।