सलीम रज़ा
देहरादून: उत्तराखण्ड में बेलगाम अफसरशाही से नेता, कार्यकर्ता यहां तक की सत्तासीन सरकार के मंत्री भी परेशान हैं। कई बार नाराज मंत्रियों ने इसकी शिकायत भी की लेकिन नतीजा वही ढ़ाक के तीन पात। दरअसल सरकार के कार्य और योजनाओं को धरातल पर उतारना और उसे कामयाब बनाना या विफल करना अफसरों पर निर्भर करता है।
यदि अफसर बेलगाम हो जायें तो सरकार के कामकाज पर प्रतिकूल असर पड़ता है। इसका सबसे बड़ा कारण है कि प्रदेश में मंत्रियों को ए.सी.आर लिखने का अधिकार नहीं है हां उत्तराखण्ड में पहली निर्वाचित सरकार कांग्रेस के वक्त में मंत्रियों को ए.सी.आर (नौकरशाहों की गोपनीय बार्षिक रिपोर्ट)लिखने का अधिकार उस वक्त के मुखिया एन.डी.तिवारी के समय में था लेकिन बाद में इस प्राविधान को समाप्त कर दिया गया।
ये ही वजह रही कि उत्तराखण्ड में सरकार और मंत्रियों के बीच कई बार टकराव के हालात पैदा हो गये। अब चूंकि देवभूमि में धामी-2 की सरकार आई लिहाजा कैबिनेट मंत्रियों ने सबसे पहले अपने मुखिया से प्रदेश में अफसरशाही पर लगाम कसने के लिए ए.सी.आर का हक मंत्रियों को दिये जाने की बात रखी है। इसको लेकर वे लामबंद भी हो गये हैं, वैसे मंत्रियों को ए.सी.आर (नौकरशाहों की गोपनीय बार्षिक रिपोर्ट) लिखने का अधिकार कई प्रदेशों में है लेकिन उत्तराखण्ड में ऐसा प्राविधान नहीं है जिसको लेकर मंत्री असंतुष्ट हैं।
अब देखना ये है कि धामी सरकार को यदि अपनी योजनाओं को जनआंकाक्षाओं के अनुरूप सुचारू रूप से धरातल पर उतारना है तो प्रदेश की अफसरशाही पर लगाम कसनी ही होगी यदि उनके मंत्री इस मांग को रख रहे हैं तो वर्तमान मुखिया को उस पर अमल करना ही चाहिए यदि ऐसा नहीं हुआ तो पूर्व की तरह सरकार और मंत्रियों की किरकिरी होती रहेगी।