इडी अमीन डाडा वो शख्स जिसे दुनिया के सबसे क्रूर तानाशाहों में से एक माना जाता है। वो शख्स जो अपने कार्यकाल में 5 लाख लोगों की हत्या का कारण बना, वो शख्स जिसने खुद दावा किया था कि वो इंसानी मांस खाता है और वो शख्स जिसने एक पूरे देश को सिर्फ अपनी लालच के लिए बर्बाद कर दिया था। अमीन की कहानी को चंद शब्दों में नहीं समेटा जा सकता, क्योंकि जब-जब अमीन की बात होगी, तब-तब यूगांडा में उसके द्वारा फैलाई गई हिंसा और क्रूरता की भी बात होगी।
‘ऑल दैट्स इंट्रेस्टिंग’ वेबसाइट की रिपोर्ट के अनुसार अमीन साल 1971 से 1979 तक यूगांडा का तानाशाह था।उस दौरान उसने कई बर्बताएं की जिसकी वजह से उसे ‘यूगांडा का कसाई’ कहा जाने लगा। पर उसकी कहानी की शुरुआत यहां से नहीं होती है। उसके तानाशाह बनने का सफर काफी लंबा है। उत्तर-पश्चिमी यूगांडा में, सुडान और कॉन्गो के बॉर्डर पर उसका जन्म हुआ था। उसकी सही बर्थ डेट तो लोगों नहीं मालूम मगर दावा किया जाता है कि वो 1925 में पैदा हुआ था। 6 फीट 4 इंच का कद, पढ़ाई में कमजोर मगर बॉक्सिंग, रग्बी और स्विमिंग का वो चैंपियन था जिसकी वजह से उसका रूप खतरनाक लगता था।
बन गया आर्मी प्रमुख
उस दौर में यूगांडा पर अंग्रेजों का राज था। अमीन को 1946 में आर्मी में जगह मिल गई। वो आर्मी के प्रति इतना समर्पित था कि धीरे-धीरे उसका प्रमोशन होता गया और 1962 तक उसे मिलिट्री में सबसे ऊंचा दर्जा दे दिया गया जो उस वक्त अफ्रीकन लोगों को दिया जाता था। 1962 में देश आजाद हुआ और अमीन के रिश्ते प्रधानमंत्री मिल्टन ओबोटे से बेहद खास हो गए। अमीन की मदद से ओबोटे ने देश की सत्ता हासिल कर दी और अमीन को आर्मी का मुखिया बना दिया। पर अमीन उसका भी सगा नहीं निकला। उसे सत्ता की ऐसी भूख थी कि 25 जनवरी 1971 को अमीन ने सत्ता परिवर्तन कर दिया और ओबोटे को हिरासत में ले लिया।
सत्ता पर बैठते ही करवाने लगा हत्याएं
अमीन के सत्ता में आने पर लोगों को लगा कि वो लोकल व्यक्ति है, गरीबों का मसीहा है और अपने तौरतरीकों में अनौपचारिक है। पर अंदर ही अंदर अमीन के मनसूबे तो कुछ और ही थे। वो अपनी विश्वस्नीय सेना तैयार कर रहा था। उसने आर्मी के करीब 5000-6000 जवानों को मौत के घाट उतरवा दिया जो ओबोटे के सपोर्टर थे। इसके साथ ही उसने देश में राजनीतिक हत्याएं करवाईं जिसमें कई बदले की भावना से कई गई थीं। लोगों का मानना है कि उसने करीब 3 लाख लोगों की जान ली पर कुछ लोग तो दावा करते हैं कि ये संख्या 5 लाख तक थी।
खाता था इंसानी मांस
उसके निजी जीवन की बात करें तो अमीन ने यूगांडा के अलग-अलग समुदायों की महिलाओं से शादियां की थीं। उसकी 6 पत्नियां थीं पर देशभर में उसकी 30 से ज्यादा प्रेमिकाएं थीं। अफाह उड़ा करती थी कि वो अपने फ्रिज में इंसानी सिर सहेज कर रखा करता था। कई लोगों दावा है कि उसने 4 हजार अपाहिज लोगों को नील नदी में मगरमच्छों का चारा बनने के लिए फेंक दिया था। साल 1976 में उसने खुद ये दावा किया था कि वो इंसानी मांस खाता है जिसका स्वाद नमकीन होता है, तेंदुए के मांस से ज्यादा नमकीन!
इजरायलियों को किया निष्कासित
वो लीबिया के तानाशाह मुअम्मर अल-गद्दाफ़ी का दोस्त बन चुका था। तंजानिया से युद्ध लड़ने के लिए उसने इजरायल से मदद मांगी तो उन्होंने मना कर दिया, उसके बाद अमीन ने लीबिया से मदद मांगी थी। यही वजह है कि वो इजरायल और यूरोपीय देशों से चिढ़ता था। उसने देश से करीब 500 इजरायली और 50 हजार साउथ एशियन लोगों को निष्कासित कर दिया और उनके द्वारा चलाए जाने वाले बिजनेस को अपने खास लोगों में बांट दिया। अपने शासन के दौरान उसने यूगांडा की अर्थव्यवस्था को पूरी तरह से तहस-नहस कर दिया। वो अपने चहीतों को महंगे तोहफे देता और अपने फायदे के लिए सरकारी फंड को खर्च भी करने लगा था।
आतंकवादियों की मदद की
1976 में उसने जीवन के सबसे गलत निर्णयों में से एक लिया। उसने एयर फ्रांस को हाइजैक करने वाले फिलिस्तीनी और वामपंथी उग्रवादियों को मदद का ऑफर दे डाला। तेल अवीव से पैरिस जा रही फ्लाइट को उसने अपने देश के एक एयरपोर्ट पर उतरवाया जहां उसने जरूरी सुविधाएं आतंकवादियों को मुहैया करवाईं। उस विमान में 246 यात्री और 12 क्रू के लोग थे। उसमें 105 इजरायली बंदी भी थे जिन्हें छुड़ाने के लिए एंटेब एयरपोर्ट पर इजरायली सैनिकों ने सबसे सफल रेस्क्यू ऑपरेशन किया जिसमें से 101 लोगों को वो बचाने में कामयाब हुए और 1 इजरायली सैनिक की जान गई। जबकि 7 हाइजैकर और 20 यूगांडा के जवान ढेर हो गए।
तंजानिया पर कर दिया हमला
देश बर्बादी की ओर बढ़ता जा रहा था, महंगाई बढ़ती जा रही थी। कॉफी, जो देश से एक्सपोर्ट हुआ करती थी, उसका सबसे बड़ा खरीददार अमेरिका था। उसने भी सारे संबंध तोड़ लिए तो व्यपारियों को काफी नुकसान हो रहा था। अंदरूनी कलह और आवाज अमीन के खिलाफ उठ रही थी। इन सब चीजों को देखते हुए, उसने सत्ता में बने रहने की सबसे आखिरी चाल चली और अक्टूबर 1978 में उसने तंजानिया पर हमला बोल दिया। तंजानिया ने युद्ध लड़ा और यूगांडा की सेना को हरा दिया। इसके बाद 11 अप्रैल 1979 को तंजानिया की सेना और निर्वासित यूगांडा के सैनिकों ने यूगांडा की राजधानी कंपाला पर कब्जा कर लिया। इस तरह अमीन का शासन समाप्त हुआ।
2003 में हुई मौत
बचने के लिए अमीन सबसे पहले अपनी पत्नियों और 30 बच्चों के साथ लीबिया भागा फिर वहां से साउदी अरब के जेद्दा चला गया। 1989 तक वो वहीं रहा और उसके बाद नकली पासपोर्ट बनवाकर वो कॉन्गो के शहर किनशासा चला गया। 16 अगस्त 2003 को उसकी मौत हो गई। अपने शासन के दौरान अमीन खुद को भगवान मानने लगा था। वो खुद को अफ्रीका में ब्रिटिश साम्राज्य का विजेता बताता था। आज भी यूगांडा के लोग जब उसका नाम सुनते हैं तो कांप उठते हैं।
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