मशहूर लोक गायिका शारदा सिन्हा का अंतिम संस्कार आज पूरे राजकीय सम्मान के साथ पटना के घाट पर किया गया। बेटे अंशुमान सिन्हा ने उन्हें मुखाग्नि दी। उन्होंने कहा कि मेरी माँ ने 55 वर्षों तक संगीत की यात्रा की, ‘ लोक संस्कृति’ का समर्थन किया और इसे और भी समृद्ध किया। उन्होंने अपने बच्चों को जो संस्कृति दी, वह इसी ‘लोक संस्कृति’ से थी,उन्होंने हमें इसके महत्व के बारे में बताया। सिन्हा ने आगे कहा कि उन्होंने कई तरह के गीत गाए, लेकिन उन्हें छठ गीतों का आशीर्वाद मिला और इसलिए छठ वैश्विक बन गया। इन दोनों के बीच गहरा रिश्ता था।
राजेंद्र नगर क्षेत्र (कंकड़बाग के पास) स्थित शारदा सिन्हा के आवास से श्मशान घाट तक अंतिम यात्रा निकाली गई, जहां उनका अंतिम संस्कार किया गया। नयी दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में इलाज हो रहा था। वह 72 वर्ष की थीं। लोकप्रिय लोकगायिका का पार्थिव शरीर बुधवार को विमान के जरिये नयी दिल्ली से पटना लाया गया। पटना हवाई अड्डे पर बिहार के कई मंत्री मौजूद थे। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार उनके घर गए और पार्थिव शरीर पर पुष्पचक्र अर्पित किया। केंद्रीय मंत्री और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा के बृहस्पतिवार शाम को सिन्हा के घर जाने की उम्मीद है।
‘ बिहार कोकिला’ के रूप में विख्यात शारदा सिन्हा ने ‘कार्तिक मास इजोरिया’, ‘सूरज भइले बिहान’ सहित कई लोकगीत और छठ पर्व के गीत गाए। उन्होंने ‘तार बिजली’ और ‘बाबुल’ जैसे हिट हिंदी फिल्मी गाने भी गाए। छठ पर्व के पहले दिन उनका गुजरना भी एक तरह का संयोग है, जिसने लोगों को और भावुक कर दिया। कई लोग इसे विधि का विधान बता रहे हैं। प्रशिक्षित शास्त्रीय गायिका सिन्हा को अपनी गायकी में शास्त्रीय और लोक संगीत के मिश्रण के लिए व्यापक रूप से सम्मानित किया गया। उन्हें अक्सर ‘मिथिला की बेगम अख्तर’ कहा जाता था। वह एक समर्पित छठ उपासक थीं और अपने गिरते स्वास्थ्य के बावजूद हर साल त्योहार के अवसर पर एक नया गीत जारी करती थीं।