
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के शताब्दी समारोह को संबोधित करते हुए संगठन के शताब्दी वर्ष को एक ऐतिहासिक अवसर बताया। उन्होंने कहा कि संघ पर लगे झूठे मुकदमों और प्रतिबंधों के बावजूद, संगठन ने कभी भी कटुता नहीं रखी, क्योंकि वह उस समाज का हिस्सा है जो अच्छे और बुरे दोनों को स्वीकार करता है।
अपने संबोधन की शुरुआत में प्रधानमंत्री मोदी ने महानवमी और आने वाली विजयादशमी की शुभकामनाएं दीं। उन्होंने कहा कि विजयादशमी अन्याय पर न्याय, असत्य पर सत्य और अंधकार पर प्रकाश की जीत का प्रतीक है। इसी दिन के आसपास 100 वर्ष पूर्व संघ की स्थापना को उन्होंने एक संयोग नहीं, बल्कि राष्ट्र चेतना की परंपरा का पुनरुत्थान बताया।
इस अवसर पर प्रधानमंत्री मोदी ने आरएसएस के योगदान को रेखांकित करते हुए विशेष रूप से डिजाइन किया गया स्मृति डाक टिकट और 100 रुपए का स्मृति सिक्का जारी किया। उन्होंने बताया कि सिक्के पर एक ओर राष्ट्रीय चिन्ह और दूसरी ओर सिंह के साथ वरद मुद्रा में भारत माता की भव्य छवि है। उन्होंने यह भी कहा कि भारतीय मुद्रा पर भारत माता की तस्वीर संभवतः स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार देखी जा रही है। सिक्के पर संघ का बोध वाक्य “राष्ट्राय स्वाहा, इदं राष्ट्राय इदं न मम” भी अंकित है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि संघ की शाखाएं एक प्रेरणा भूमि हैं, जहां स्वयंसेवकों का निर्माण होता है और वे ‘अहं’ से ‘वयं’ की यात्रा करते हैं। उन्होंने संघ को ‘व्यक्ति निर्माण की यज्ञ वेदी’ बताया और कहा कि यह राष्ट्र निर्माण की दिशा में एक महान प्रयास है।
मोदी ने 1963 की घटना को याद करते हुए बताया कि उस वर्ष संघ के स्वयंसेवक 26 जनवरी की परेड में शामिल हुए थे और उन्होंने राष्ट्रभक्ति की धुन पर कदमताल किया था। उन्होंने कहा कि जिस तरह नदियों के किनारे सभ्यताएं पनपती हैं, उसी तरह संघ की धारा ने भी अनगिनत जीवनों को आकार दिया है।
अपने भाषण के अंत में प्रधानमंत्री ने संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार को श्रद्धांजलि अर्पित की और देश सेवा में लगे कोटि-कोटि स्वयंसेवकों को शुभकामनाएं दीं। उन्होंने कहा कि संघ की 100 वर्षों की गौरवशाली यात्रा का आधार रहा है – राष्ट्र प्रथम का भाव और ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ का लक्ष्य।