
देहरादून : आस्था, भक्ति और परंपरा का महापर्व छठ इस बार शनिवार से आरंभ हो जाएगा। नहाय-खाय के साथ चार दिवसीय इस पर्व की विधिवत शुरुआत होगी। इसके साथ ही 36 घंटे का निर्जला व्रत भी प्रारंभ हो जाएगा। दून में इस पर्व को लेकर श्रद्धालुओं में भारी उत्साह देखा जा रहा है। शुक्रवार को दिनभर बाजारों में पूजन सामग्री की खरीददारी होती रही और घाटों पर सजावट व सफाई का कार्य तेजी से जारी रहा।
बाजारों में छठ की रौनक
शहर के झंडा बाजार, सहारनपुर चौक, निरंजनपुर मंडी, पटेलनगर और रायपुर क्षेत्र के बाजारों में शुक्रवार को रौनक देखने लायक रही। श्रद्धालुओं ने बांस की टोकरी, सूप, दौरा, फल, नारियल, गन्ना, दीपक, दूध, शकरकंद और अन्य पूजन सामग्री की खरीदारी की। दुकानदारों के अनुसार इस बार पिछले साल की तुलना में अधिक भीड़ रही। महिलाओं और युवतियों ने पारंपरिक साड़ियों, पूजा वस्त्रों और साज-सज्जा के सामानों की भी खरीदारी की।
घाटों पर तैयारियों का अंतिम चरण
छठ पूजा के लिए दून में 23 से अधिक घाटों को सजाया जा रहा है। चंद्रबनी, टपकेश्वर, रायपुर, मालदेवता, प्रेमनगर, नेशविला रोड, डोईवाला और सहस्रधारा क्षेत्र के घाटों पर प्रशासन और स्थानीय समितियों की ओर से सफाई, लाइटिंग, सुरक्षा और बैरिकेडिंग का कार्य अंतिम चरण में है।नगर निगम और पुलिस प्रशासन की टीमें घाटों पर पहुंचकर व्यवस्थाओं का निरीक्षण कर रही हैं। श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए अस्थायी शौचालय, पीने के पानी की व्यवस्था और सुरक्षा कर्मियों की तैनाती भी की जा रही है।
नहाय-खाय से शुरू होगा पर्व
पहले दिन नहाय-खाय की परंपरा के साथ छठ व्रत की शुरुआत होती है। इस दिन व्रती गंगा या पवित्र जलाशय में स्नान कर शुद्ध भोजन ग्रहण करते हैं। इस भोजन को पूर्ण रूप से सात्विक और शुद्ध माना जाता है।
इस दिन से ही छठ प्रसाद तैयार करने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। चूल्हा और बर्तन अलग रखे जाते हैं तथा व्रती और उनके परिवारजन प्याज, लहसुन, मांसाहार आदि से परहेज़ करते हैं। नहाय-खाय के अगले दिन खरना का पर्व मनाया जाता है, जिसमें गुड़ की खीर और रोटी का प्रसाद बनाया जाता है।
चार दिन की पूजा विधि
छठ महापर्व चार दिनों तक चलता है, जिसमें प्रत्येक दिन की अपनी धार्मिक और वैज्ञानिक महत्ता होती है —
25 अक्तूबर – नहाय खाय: व्रत की शुरुआत स्नान और शुद्ध भोजन से होती है।
26 अक्तूबर – खरना: इस दिन व्रती गुड़-चावल की खीर बनाते हैं और रात्रि में प्रसाद ग्रहण करने के बाद निर्जला व्रत प्रारंभ होता है।
27 अक्तूबर – संध्या अर्घ्य: व्रती डूबते सूर्य को अर्घ्य देते हैं, घाटों पर दीप जलाकर पूजा की जाती है।
28 अक्तूबर – ऊषा अर्घ्य: अंतिम दिन उदयमान सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का समापन होता है।
भक्ति और परंपरा का संगम
छठ पर्व सूर्य उपासना का सबसे प्राचीन पर्व माना जाता है। इसमें सूर्य भगवान और माता षष्ठी की पूजा की जाती है। यह पर्व शुद्धता, अनुशासन, आस्था और संयम का प्रतीक है। कहा जाता है कि सूर्य की उपासना से स्वास्थ्य, समृद्धि और पारिवारिक सुख की प्राप्ति होती है।
छठ अवकाश की मांग
इधर, बिहारी महासभा ने छठ पर्व के अवसर पर दो दिन के सार्वजनिक अवकाश की मांग की है। महासभा के अध्यक्ष ललन सिंह और सचिव चंदन झा ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को पत्र लिखकर कहा कि यह पर्व उत्तराखंड में भी बड़ी संख्या में लोगों द्वारा मनाया जाता है। व्रती कठोर उपवास रखते हैं और घाटों पर सामूहिक पूजन करते हैं, इसलिए 27 और 28 अक्तूबर को अवकाश घोषित किया जाना चाहिए।
दून में छठ की गूंज
जैसे-जैसे पर्व नजदीक आ रहा है, दून का वातावरण भक्ति और उल्लास से सराबोर होता जा रहा है। शहर के प्रमुख मार्गों पर छठ गीतों की मधुर गूंज सुनाई दे रही है —
“केलवा जस सोनवा लागे, छठी मइया घर अइलीं…”
भक्तों का उत्साह और आस्था इस पर्व को सामाजिक एकता और सांस्कृतिक सौहार्द का प्रतीक बना रहा है।
— रिपोर्ट : फ्रंट लाइन न्यूज़, देहरादून








