अल्मोड़ा: सियासी दलों के उम्मीदवारों के नामांकन कराने के साथ ही शहर के हर कोने पर चाय की दुकानों पर चुनावी चर्चा गर्मा गई है। आपको बता दें कि माहौल ऐसा बना हुआ है कि हर मोड़ की दुकानों में चाय पर चर्चा हो रही है। इस चर्चा में एक ही बहस आम है कि टिकट नहीं मिलने से अपनी ही पार्टी से बगावत करने वाले नेता कुर्सी हथियाने के लिए किसी भी हद से गुजरने को तैयार है। ऐसा अंदेशा है की इन नेताओं के विश्वासघात से चुनावी माहौल बेहद रोचक होगा।
टिकट कटने से असंतुष्टों की लम्बी फेहरिस्त तैयार है जो अब अपने ही घर में बगावत पर उतारू हैं। संकेत ये मिल रहे हैं टिकट कटने से बागी हुये नेता चुनावी समीकरण बदल सकते हैं। चर्चा ये भी जोरों पर हे कि नेताजी का टिकट क्या कटा उन्होंने अपना घर (पार्टी) ही छोड़ गई और अब दूसरे घर (पार्टी) में सेंधमारी का काम कर रहे हैं। ऐसे मे इन नेताओं को जनता की फिक्र कम अपनी कुर्सी की चिंता ज्यादा सता रही है।
गांव में बिजली,पानी और स्कूलों में शिक्षक नहीं हैं पर इन स्वार्थी नेताओं को इससे क्या लेना देना। अगर उन्हें कोई चिंता है तो बस अपनी कुर्सी की । लोग ये भी कहते नहीं अघा रहे हैं कि चुनावी मौसम में नेताओं के सुर ही बदल रहे हैं। युवा ये कह रहे है कि बेरोजगारी लगातार बढ़ रही है पर नेताओं को इससे कोई मतलब नहीं रह गया है। उन्हें अपने रोजगार (विधायक) बनने की चिंता है।लिहाजा अब तो राजनीति ही ऐसी हो गई है जिसे देखो अपने बारे में सोचता है।