दुर्ग : किस्सा छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले के भिलाई से जुड़ा है। स्टील सिटी के नाम से पहचान रखने वाले भिलाई में एक समय 13 नंबर का डर इस कदर था कि इसका उपयोग ही बंद कर दिया गया। नंबरों में 12 के बाद सीधे 14 उपयोग होने लगा। जबकि 13 की जगह 12ए का उपयोग किया जाने लगा। इसके कई उदाहरण आज भी भिलाई में देखने को मिल जाते हैं। मसलन सिविक सेंटर के भिलाई होटल में 13 नंबर का कमरा नहीं है। 13 की जगह कमरा नंबर 12ए लिखा जाता है। इसके बाद 14 नंबर का कमरा आता है। इसी तरह रशियन कॉम्प्लेक्श में 13 नंबर की स्ट्रीट व मकान नहीं है।भिलाई के इतिहास पर आधारित किताब ”वोल्गा से शिवनाथ तक” में भिलाई में एक समय 13 नंबर के डर के पीछे के रहस्य की विस्तृत जानकारी दी गई है। किताब के लेखक व वरिष्ठ पत्रकार मोहम्मद जाकिर हुसैन बताते हैं- किताब के लिए तथ्य संग्रहित करने के दौरान कई रशियन लोगों से मेरी मुलाकात हुई, जो भिलाई स्टील प्लांट को स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके थे। इनमें से लगभग सभी ने 13 नंबर के डर के बारे में जानकारी दी। इसके बाद मैंने तथ्यों का संग्रहण कर मैंने इसे किताब में शामिल किया।”वोल्गा से शिवनाथ तक” में दिए गए तथ्यों के मुताबिक भिलाई स्टील प्लांट निर्माण के लिए आई पायनियर टीम के सदस्य और सोवियत संघ के पहले चीफ इंजीनियर एनजी क्रोटेन्कोव्ह की मौत हादसे में हो गई थी। फिशिंग के दौरान वे मरोदा टैंक में डूब गए थे। लेकिन इस हादसे ने सोवियत इंजीनियरों के एक अंधविश्वास को ऐसा मजबूत कर दिया कि उसे आज 70 बरस बाद भी तोड़ा न जा सका। ये अलग बात है कि अब तो ज्यादातर लोग भूल ही चुके हैं कि वो ’13’ नंबर का भूत आखिर क्या था। चूंकि यह परंपरा भिलाई के शुरूआती दौर की पड़ी हुई है, इसलिए आज भी भिलाई स्टील प्लांट के कई भवनों और दस्तावेजों में भी अधिकांश जगह ’13’ नंबर लापता है।
जाकिर बताते हैं कि बहुत लोगों को मालूम है कि यूरोपियन मान्यता में ’13’ नंबर को अशुभ माना जाता है, लेकिन इस बात से बहुत कम लोग वाकिफ हैं कि यह अधविश्वास छत्तीसगढ़ के भिलाई में सबसे ज्यादा लागू होता है। आज भी भिलाई में आप 32 बंगलें में 13 नंबर का बंगला अथवा भिलाई निवास (होटल) में 13 नंबर का कमरा ढूंढें तो आपको कहीं नहीं मिलेगा। इसके पीछे जो एकमात्र वजह रूसी चीफ इंजीनियर एनजी क्रोटेंकोव्ह की शनिवार 17 नवंबर 1956 को मरोदा टैंक में डूबने से हुई मौत है। क्रोटेंकोव्ह तब 32 बंगले के बंगला नंबर 13 मेें रहते थे। चूंकि वह शनिवार का दिन था और क्रोटेन्कोव्ह 13 नंबर के ही बंगले में रहते थे, लिहाजा अपने अंधविश्वास के चलते सोवियत इंजीनियरों ने मान लिया कि क्रोटेन्कोव्ह की मौत के लिए शनिवार का दिन और अंक 13 भी जिम्मेदार है।जाकिर कहते हैं- ‘चूंकि उस दौर में रूसी लोगों का भिलाई में पूरा दखल था। नतीजतन जब भिलाई निवास, 32 बंगला और इस्पात भवन का निर्माण हुआ तो उसमें 13 नंबर को जगह ही नहीं दी गई। यहां 12 नंबर के बाद 13 की जगह 12ए नंबर लिखा गया। इसी तरह रशियन काम्पलेक्स में भी बंगले और सड़क में 13 की जगह 12 ए लिखा गया।’किताब के मुताबिक भिलाई स्टील प्रोजेक्ट के शुरूआती दौर में डायरेक्टर (परचेस एंड सेल) और बाद में हिंदुस्तान स्टील लिमिटेड (एचएसएल)के चेयरमैन रहे हितेन भाया इस बारे में बताते हैं- क्राटेंकोव्ह की मौत के बाद आलम यह था कि 32 बंगले में सारे बंगले अफसरों को अलॉट हो गए लेकिन 13 नंबर को 12ए करने के बावजूद उसमें कोई रहना नहीं चाह रहा था, तब हम लोग उसमें सबसे पहले रहने गए। हमारे लिए यह बंगला कभी अनलकी नहीं रहा, यहीं रहते हुए मुझे तरक्की के मौके मिले।
इसी बंगले में रहते हुए मुझे हिंदुस्तान स्टील लिमिटेड रांची में सेक्रेट्री बनाया गया और वहां जाने के बाद मैं चेयरमैन तक बना।किताब के मुताबिक इस बंगले में रहे बीएसपी के एक अन्य अधिकारी एसके सामंता की पत्नी तृप्ति सामंता की भी राय हितेन भाया से मिलती है। वह कहती हैं- यूरोपियन भले ही 13 नंबर को अनलकी मानते हैं लेकिन, हमारे लिए तो यह लकी बंगला है। क्योंकि उनके पति का जन्मदिवस भी इसी तिथि को पड़ता है। 32 बंगले की तरह भिलाई निवास (होटल) में भी यह अधंविश्वास आज भी चलता है। 12 नंबर के बाद का कमरा आज भी दस्तावेजों में 12 ए में है, इसके बावजूद इसमें कोई गैर भारतीय तो रूकना ही नहीं चाहता है। यहां कार्यरत कर्मचारी खुद इस बात की तस्दीक करते हैं। बीएसपी में सेवा देने आए एक रूसी अफसर जेल्तकोव अलेक्जेंडर इस संदर्भ में कहते हैं कि- हम लोगों यह अंधविश्वास इतना गहरा है कि हम रूसी लोग आज भी अपनी जबान में 13 का उच्चारण नहीं करना चाहते हैं। रूसी जबान में 13 को त्रिनात्सूत कहा जाता है, लेकिन हम लोग इसे चार्वता ज्युश्रा ही कहते है। उसका मतलब होता है 14 में से एक कम।