
देहरादून : डॉ. गौतम रतूड़ी को रेडियोलॉजी के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य के लिए मेदांता गुरुग्राम में आमंत्रित कर सम्मानित किया गया। चिकित्सा क्षेत्र में उनके योगदान और रेडियोलॉजिकल तकनीकों के सटीक उपयोग को देखते हुए उन्हें “एक्सीलेंस इन रेडियोलॉजी” पुरस्कार प्रदान किया गया। कार्यक्रम में देशभर के वरिष्ठ चिकित्सक उपस्थित रहे।
इस अवसर पर डॉ. रतूड़ी ने आधुनिक चिकित्सा-विज्ञान में रेडियोलॉजी की उपयोगिता, विकिरण (Radiation) के चिकित्सीय लाभ तथा संभावित दुष्प्रभावों पर विस्तार से चर्चा की। डॉ रतूड़ी के अनुसार मेडिकल टीचिंग मैं केवल किताबी ज्ञान वाले एक्सपर्ट को ना प्राथमिकता देकर उन विशेषज्ञों को आगे आना चाहिए जिन्हें जिनको क्लिनिकल और टीचिंग दोनों फील्ड का अनुभव हो ताकि ताकि स्टूडेंट्स को वास्तविक ज्ञान मिल सके , स्कूल्स , कालेजस और यूनिवर्सिटियों मैं भी विकिरण संबंधित सेमिनार , कॉन्फ़्रेंस ,वर्कशॉप को करवाकर जानता को समुचित ज्ञान मिल पाये इस चीज को भी सुनिश्चित किया जाये ताकि साधारण जन मानस के स्वास्थ्य की रक्षा हो सके ।
रेडियोलॉजी आज चिकित्सा-जगत का अनिवार्य हिस्सा बन चुकी है, जहाँ उच्च-सटीकता वाली इमेजिंग तकनीकें — जैसे MRI (Magnetic Resonance Imaging), CT Scan (Computed Tomography), PET Scan (Positron Emission Tomography), Ultrasonography और Digital X-Ray — रोग-निदान, उपचार योजना और सर्जिकल निर्णयों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
डॉ. रतूड़ी के अनुसार, रेडियोलॉजिकल विकिरण (Radiological Radiation) के चिकित्सीय फायदे अनेक हैं —
यह रोग के शुरुआती चरण में ही सटीक निदान की सुविधा देता है।
कैंसर, हड्डी भंग (Fracture), स्ट्रोक, न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर और हृदय रोगों में जीवन रक्षक साबित होता है।
विकिरण चिकित्सा (Radiation Therapy) में नियंत्रित मात्रा में दिए गए किरणों से कैंसर कोशिकाओं को नष्ट किया जाता है।
इंटरवेंशनल रेडियोलॉजी (Interventional Radiology) के माध्यम से बिना ऑपरेशन के जटिल रोगों का इलाज संभव है।
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि विकिरण का प्रयोग चिकित्सकीय रूप से फायदेमंद तो है, परंतु उसका अनियंत्रित या अत्यधिक उपयोग नुकसानदेह हो सकता है। उन्होंने बताया कि आयनकारी विकिरण (Ionizing Radiation) कोशिकाओं के DNA स्ट्रक्चर को प्रभावित कर सकता है, जिससे कोशिकीय उत्परिवर्तन (Mutation) और कैंसरजन्य परिवर्तन (Carcinogenic Effects) की संभावना बढ़ जाती है। विशेषकर बार-बार CT Scan या X-Ray कराने वाले मरीजों में यह जोखिम अधिक होता है।
डॉ. रतूड़ी ने चिकित्सकों और तकनीशियनों को ALARA सिद्धांत (As Low As Reasonably Achievable) का पालन करने की सलाह दी — अर्थात् जितना कम विकिरण आवश्यक हो, उतना ही उपयोग किया जाए। उन्होंने कहा कि रेडियोलॉजिस्ट को हमेशा डोज मॉनिटरिंग (Radiation Dose Monitoring) और शील्डिंग (Shielding Techniques) जैसे सुरक्षा-उपाय अपनाने चाहिए।
उन्होंने यह भी बताया कि आधुनिक तकनीकें जैसे Low-Dose CT Scan, AI-based Image Optimization और Lead Protection Barriers आज विकिरण जोखिम को न्यूनतम करने में मददगार साबित हो रही हैं। आने वाले वर्षों में AI और 3D Imaging के साथ यह क्षेत्र और सुरक्षित, तेज़ और सटीक हो जाएगा।
मेदांता अस्पताल प्रबंधन ने कहा कि डॉ. रतूड़ी ने रेडियोलॉजिकल विज्ञान को जनसेवा और रोगी-सुरक्षा दोनों के दृष्टिकोण से नई दिशा दी है। उनका यह योगदान न केवल उत्तराखंड, बल्कि पूरे देश के चिकित्सा-समुदाय के लिए प्रेरणास्रोत है।





