किसी भी चुनाव में चाहे संसदीय हों या फिर राज्य विधानसभाओं के इन सभी चुनावों में एस.सी. और एस.टी के वोटरों पर सभी सियासी दलों की पैनी नजर रहती है। अब हम उत्तराखंड विधानसभा चुनाव के पप्रिेक्ष्य में देखें तो यहां पर भी एस.सी और एस.टी के वोटरों का असर पूरे राज्य में है। आपको बता दें कि प्रदेश विधानसभा में एस.सी के लिए 13 तथा एस.टी के लिए दो सीटें रिजर्व हैं।
उत्तराखण्ड में इनके सियासी असर को इस नजरिये से भी समझा जा सकता है कि हर सियासी दल में एस.सी और एस.टी के सेल बने हुए हैं। यहां तक की मंत्रिमंडल में भी इन्हें हमेशा तरजीह दी गई है। ये ही वजह है कि सियासी दल इन्हें अपनी तरफ खींचने का प्रयास करते हैं क्योंकि ये ही तबका मतदान के लिए ज्यादा संख्या में बूथ तक पहुंचता है। आईए नजर डालते हैं उत्तराखण्ड में जब साल 2017 के विधानसभा चुनाव में राज्य भर का मतदान प्रतिशत 65.60 था और इस प्रतिशत में सबसे ज्यादा 74.60 प्रतिशत मतदान योगदान एस.सी के वोटरों का था।
जाहिर है कि उत्तराखण्ड की सियासत में ण्स.सी और एस.टी के वोटरों का अहम रोल रहता है। गौरतलब है कि उत्तराखण्ड की साल 2021 की अनुमानित पाप्यूलेशन के मुताबिक एस.सी की जनसंख्या 22 लाख और एस.टी के वोटरों की जनसंख्या 3.38 लाख है अगर दोनों को मिलाकर देखें तो यह आंकड़ा 25 लाख से ऊपर है। निर्वाचन आयोग के मापदंड के अनुसार कुल जनसंख्या का 61 फीसद वोटर बनने के काबिल हो जाता है।
इसके मुताबिक उत्तराखण्ड में एस.सी और एस.टी वोटरों का प्रतिशत 18.50 पहुंचता है। अब आप देख लें कि इतनी बड़ी तादाद में मतदाताओं को नाखुश करने का जोखिम कोई भी सियासी दल नहीं उठाता है । सबसे बड़ा पहलू यह है कि ये वो वोटर हैं जो सबसे ज्यादा तादाद में पोलिंग बूथ तक पहुंचते हैं। 2017 में हुए चुनाव में एस.सी और एस.टी के वोटरों ने 74.60 फीसद और 64.39 फीसद वोट डाले थे।
बहरहाल इस बार एस.सी और एस.टी के वोटरों को लुभाने में इस समय सभी सिासी दल लगे हुए हैं। गौरतलब है कि उत्तराखण्ड की कई विधानसभा सीटों पर एस.सी के मतदाता ही उम्मीदवार का सियासी भविष्य तय करते हैं। वैसे भी यहां की विधानसभा सीटों पर जीत हार का फसला कम अंतर से होता रहा है। ऐसे में जो एस.सी के वोटरों को साधने में महारत रखता है उसे इस बात की आशा रहती है।
सियासी विशलेश्कों का मानना है कि पहाड़ी क्षेत्रों में एस.सी जाति का वोट बैंक कांग्रेस के पक्ष में झुकता है, जबकि मैदानी क्षेत्र में इस पर एक दौर में बसपा, सपा का प्रभाव रहा है। राज्य गठन के बाद 2002 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में बसपा को सात सीटें हासिल हुई थीं जो अब निल पर सिमट चुकी है। ये बात और है कि सपा यहां कभी अपना खाता नहीं खोल पाई। एस.सी और एस.टी के व्यक्तियों को लुभाने के लिए सरकार कई योजनाएं चलाती है। इनमें सरकारी सेवाओं में आरक्षण, कालेज में छात्रवृत्ति से लेकर सस्ता राशन, सरकारी अनुदान, बच्चों की शिक्षा व शादी के लिए आर्थिक सहायता जैसी सेवाऐं प्रमुख है।