देश में बीते सालों से धार्मिक विशेष के खिलाफ एक नया ट्रेंड सियासी पार्टियों की तरफ से चला है जो विवाद का रूप लेता रहा है। ऐसा ही मामला इस चुनावी दौर में अचानक निकलकर सामने आया है। आपको बता दें कि अभी हाल में कर्नाटक के एक कॉलेज से शुरू हुआ हिजाब विवाद अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी चर्चा और बहस का विषय बन गया है।
अब इस विवाद को और तूल देने का काम किया है बांग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन ने । तस्लीमा नसरीन ने भी शिक्षण संस्थानों में हिजाब पहनने को लेकर टिप्पणी की है। एक टीवी चैनल को दिए गए इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि हिजाब, बुर्का और नकाब अत्याचार के परिचायक हैं।
जैसा की मालूम है कि शिक्षण संस्थानों में हिजाब पर रोक लगाने के खिलाफ याचिका पर कर्नाटक हाई कोर्ट सुनवाई कर रहा है। गौरतलब है कि स्कूल और कॉलेज में यूनिफॉर्म ड्रेस कोड को लेकर तस्लीमा नसरीन ने कहा,मुझे लगता है कि शिक्षा का अधिकार ही धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार है।
उन्होंने कहा, ‘कुछ मुसलमान सोचते हैं कि हिजाब बहुत जरूरी है और कुछ सोचते हैं कि यह गैरजरूरी चीज है। लेकिन सातवीं शताब्दी में नारी विरोधी लोग इस हिजाब को लेकर आए थे क्योंकि वे महिलाओं को सेक्स ऑब्जेक्ट से ज्यादा कुछ नहीं मानते थे’।
तस्लीमा नसरीन ने कहा, ‘उन लोगों को लगता था कि कोई महिला की तरफ तभी देखेगा जब उसको शारीरिक जरूरतें होंगी। इसलिए महिलाओं को बुर्का और हिजाब पहनना चाहिए उनको पुरुषों से खुद को छिपाकर रखना चाहिए। उन्होंने कहा, हमारे आज के समाज में हमने सीखा है कि पुरुष और महिलाएं बराबर हैं। इसलिए हिजाब और नकाब महिलाओं पर अत्याचार की निशानी है।