निवर्तमान मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने पिरूल से बिजली उत्पादन, गांवों तक स्वरोजगार और ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने का सपना देखा तो था लेकिन ये सपना दो साल में ही चकनाचूर हो गया। आपको बता दें कि उत्तराखंड रिनिवेबल एनर्जी डेवलपमेंट एजेंसी (उरेडा) केे माध्यम से 21 प्रोजेक्ट आवंटित हुए। छह प्रोजेक्ट लगे और उनमें से अब कई बंद हो चुके हैं। बाकी भी बंदी की कगार पर हैं।
गौरतलब है कि करीब ढाई साल पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने जंगलों में चीड़ के पिरूल से लगने वाली आग के समाधान के तौर पर पिरूल से बिजली उत्पादन की नीति बनवाई थी । यह नीति जारी हुई इस आधार पर उरेडा ने लोगों से प्रस्ताव मांगे नीति इतनी लुभावनी थी कि लोगों ने उत्साह के साथ आवेदन किए।
पहले चरण में 21 प्रोजेक्ट आवंटित किए गए इनमें से अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, नैनीताल, उत्तरकाशी और पौड़ी में कुल छह प्रोजेक्ट स्थापित हुए बाकी आवेदक अभी तक प्रोजेक्ट ही नहीं लगा पाए। लिहाजा स्वरोजगार का सपना देखकर पिरूल से बिजली के प्रोजेक्ट लगाने वाले लाखों रुपये के कर्ज के बोझ में दब गए हैं।
आपको बता दें कि 21 से 28 लाख रुपये तक की लागत से पहाड़ों में प्रोजेक्ट लगाने वाले लोगों का कहना है कि लगातार समस्याओं की वजह से वह बिजली उत्पादन ही नहीं कर पाए। चीफ प्रोजेक्ट ऑफिसर, उरेडा का कहना है कि हम कोशिश कर रहे हैं सभी प्रोजेक्ट संचालकों से बातचीत भी की जा रही है। इन सभी प्रोजेक्ट का आवंटन पिरूल नीति के तहत किया गया था इसी के तहत जल्द ही कुछ समाधान निकाला जाएगा। .