दुनियाभर में सीरियल किलिंग के ऐसे- ऐसे भयानक मामले सामने आए हैं जिनके बारे में जानकर भी रूह कांप जाती है। ऐसे ही एक कुख्यात सीरियल किलर डॉक्टर मार्सेल पेटियोट की हैवानियत के किस्से भी बहुत डरावने हैं।
पड़ोसियों को घर से आई गंदी बदबू
नाजी के कब्जे वाले पेरिस में सबसे बेहतरीन और दयालू डॉक्टर कहे जाने वाले डॉक्टर मार्सेल पेटियोट को लोग बखूबी जानते थे। उसने गरीबों के मुफ्त इलाज किए और सताए गए यहूदियों को भागने में मदद करने के लिए अपनी जान भी जोखिम में डाल दी थी। सब कुछ ठीक था लेकिन अचानक एक दिन मार्च 1944 में मार्सेल के पड़ोसियों को उसके घर से बदबू और चिमनी से काला धुआं निकलता दिखा। उन्होंने तुरंत इसकी जानकारी पुलिस को दी।सूचना मिलते ही दो पुलिस अधिकारी मौके पर पहुंचे। उन्होंने चिमनी में लगी आग को बुझाने की कोशिश की तो उनके होश उड़ गए। दरअसल, यहां उन्होंने कुछ ऐसा देख लिया था कि उन्हें उल्टी तक आ गई। यहां चिमनी के आस-पास कई फटे कई शव बदतर हालत में पेटियोट की हवेली में बिखरे पड़े थे। उन्होंने फिर हवेली की तलाशी ली तो उन्हें और भी कई शव हवेली के अंदर पड़े मिले।
14 किलो हड्डियां, 10 खोपड़ियां और लाश के टुकड़ों से भरी बाल्टियां
एक संगमरमर की सीढ़ी के नीचे कटे हुए पैर, हाथ और सिर से भरे बैग थे। कम से कम 10 शवों के टुकड़े थे। वहीं बाकी कई शव बेसमेंट की भट्टी में जल रहे थे जिसके धुएं कि शिकायत लोगों ने पुलिस को दी थी। पुलिस को वहां पर “33 पाउंड (14 किलो) जली हुई हड्डियां, 11 पाउंड (5 किलो) बाल, 10 से अधिक पूरी खोपड़ियां और शवों के बारीक टुकड़ों से भरे तीन कूड़ेदानों मिले। ये टुकड़े इतने छोटे थे कि शरीर का हिस्सा ही समझ नहीं आ रहा था।
इसके बाद इतिहास के सबसे भीषण सीरियल किलर द बचर ऑफ पेरिस का पर्दाफाश हो गया था। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, पेटियोट ने 27 पुरुषों, महिलाओं और बच्चों की हत्या की थी, लेकिन उसने खुद 63 लोगों की हत्या की बात स्वीकार की। मरने वालों की ये संख्या कम से कम 160 हो सकती है। फ्रांसीसी अधिकारियों ने पहली बार पुलिस रिकॉर्ड जारी किया तो 1946 में 49 की उम्र में कोर्ट ने उसे मौत की सजा सुनाई।
‘वो आदमी ऐसी कर ही नहीं सकता।
Mirror के मुताबिक, डेथ इन द सिटी ऑफ लाइट नामक किताब के लेखक डेविड किंग कहते हैं- ”पड़ोसियों ने पहले तो यह मानने से इनकार कर दिया कि इतना दयालू डॉक्टर इस तरह की बर्बरता भी कर सकता है। लोगों का कहना था कि वह तो गरीबों का मुफ्त में इलाज किया करता था, वह ऐसा नहीं कर सकता।”
‘जिसकी भी मदद की वह गायब हो गया’
डेविड ने किताब में लिखा है कि पेटियोट को पूरे पेरिस में एक स्वतंत्रता सेनानी के रूप में जाना जाता था, जो नाजियों द्वारा शिकार किए जा रहे किसी भी व्यक्ति की भागने मदद करता था। लेकिन जब उसके द्वारा भगाए गए लोगों को मैंने खोजना शुरू किया गया तो एक भी व्यक्ति नहीं मिला। दरअसल, उसने मदद के नाम पर उन सभी को मार दिया था। यकीन नहीं होता कि ये डॉक्टर इतना खतरनाक था।”
‘अपना सब सामान पैक करके मेरे घर आ जाओ’
Daily Mail के मुताबिक, पेटियोट ने युद्ध की भयावहता का फायदा उठाते हुए ये खूनी खेल खेला था। वह एक गुप्त नेटवर्क चलाने का दावा करता था जो पुर्तगाल के रास्ते दक्षिण अमेरिका के लिए सुरक्षित रास्ता देता है। प्रत्येक “शरणार्थी” से 25,000 फ्रैंक चार्ज करते हुए, उसने उनसे कहा था कि वे अपने सामान में सबसे जरूरी चीजें पैक करके उसके घर पर पहुंचें। पुलिस को बाद में उसके घर पर 49 खाली सूटकेस मिले। यानी पेटियोट ने उनका सामान लूटकर उनकी हत्या कर दी थी।
साथ ही उसने उन्हें अपने रिश्तेदारों को एक पत्र लिखने के लिए राजी किया था, जिसमें कहा गया था कि वे अब अर्जेंटीना में सुरक्षित हैं, लेकिन आगे कोई भी संपर्क खतरनाक होगा। फिर उसने उनसे कहा कि अर्जेंटीना में टीकाकरण के बिना नहीं जा सकते। इसके बाद वह उन्हें एक कमरे में ले जाता जहां उन्हें साइनाइड का इंजेक्शन देकर उन्हें तड़पाकर मार देता।
हत्या के साथ लूटे 1।57 अरब रुपये
यहां तक कि पेटियोट कुछ पीड़ितों के घरों में उनके फर्नीचर चोरी करने के लिए गया था और उसने पड़ोसियों से कहा कि ये उन्हें भगाने की डील का हिस्सा है। कुल मिलाकर ऐसा माना जाता है कि उसने अपने पीड़ितों से 200 मिलियन फ्रैंक लूटे थे। आज के हिसाब के 15 मिलियन पाउंड (1।57 अरब रुपये)। उसने कुछ शवों को नदी में फेंक दिया था, और शरीर के अंगों के प्लास्टिक के बोरों में डालकर गुजरने वाले ट्रकों में फेंक दिया था।
पहले ट्रक में मिले थे लाशों के टुकड़े
पेटियोट के घर पर छापेमारी से पहले ही एक ट्रक में एक भयानक चीज सामने आई थी। बताया गया कि “दो मानव सिर बिना त्वचा या उंगलियों के, दो पैर बिना पैर के नाखूनों के, दो पैरों की त्वचा जिसमें एड़ी और तीन खोपड़ी एक ट्रक में मिले हैं”। ये तीन जर्मन यहूदियों का एक परिवार थो जो नाजियों द्वारा पेरिस के सबसे बड़े जनसंहार से बच निकला था। पेटियोट इस परिवार का फैमिली डॉक्टर था। ऐसे में धीरे धीरे जांच में परतें खुलने लगीं और पेटियोट के घर छापेमारी में सारा पर्दाफाश हो गया।
‘मौत की सजा हुई तो लोगों से बोला।
सात महीने तक भागने के बाद, वह अक्टूबर 1944 में एक मेट्रो स्टेशन पर पकड़ा गया। उस पर हत्या के मामलों सहित 135 अपराधों का आरोप लगाया गया था। पेटियोट ने कहा कि उसके पीड़ित जर्मन या गेस्टापो मुखबिर थे तो मैं निर्दोष हूं। पेटियोट को जब मौत की सजा हुई तो वह आसानी से आगे बढ़ा मानो उसे कोई फर्क ही नहीं पड़ता।
Sources:AAjTak