
आगरा: जिले की साइबर सेल, थाना साइबर क्राइम और साइबर इंटेलिजेंस टीम ने एक ऐसे अंतरराष्ट्रीय गैंग का पर्दाफाश किया है, जो बेरोजगार युवाओं को विदेशी नौकरी का लालच देकर ठगी के कारोबार में झोंक देता था। पुलिस की इस संयुक्त कार्रवाई में उन्नाव निवासी आतिफ खान और इंदौर निवासी अजय कुमार शुक्ला को गिरफ्तार किया गया है। दोनों आरोपियों से पूछताछ में कई चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं। पुलिस जांच में यह सामने आया है कि यह गैंग भारत के विभिन्न राज्यों के बेरोजगार युवाओं को विदेशी कंपनियों में ऊंची सैलरी और बेहतर सुविधाओं वाली नौकरी का झांसा देता था। युवाओं से कहा जाता था कि उन्हें कंबोडिया या थाईलैंड में किसी डिजिटल कंपनी में काम दिलाया जाएगा, जहां उन्हें ऑनलाइन कस्टमर हैंडलिंग, डिजिटल ट्रेडिंग या डेटा एंट्री जैसे काम करने होंगे। लेकिन जैसे ही ये युवा विदेश पहुंचते थे, वहां की हकीकत कुछ और ही निकलती थी।
जांच अधिकारियों के अनुसार, विदेश पहुंचने पर इन युवाओं को हाउस अरेस्ट कर लिया जाता था। उनके पासपोर्ट और सभी दस्तावेज गैंग के सदस्य अपने कब्जे में ले लेते थे ताकि कोई भाग न सके। इसके बाद युवकों को ऑनलाइन ठगी, डिजिटल निवेश घोटालों और क्रिप्टो ट्रेडिंग के नाम पर ठगी के तरीकों की ट्रेनिंग दी जाती थी। इन्हें मजबूरन ठग गिरोहों के लिए काम करना पड़ता था, जहां उनसे विदेशी नागरिकों से संपर्क कर नकली निवेश योजनाओं में पैसे लगवाने का काम कराया जाता था। अगर कोई युवक विरोध करता था या भागने की कोशिश करता था, तो उसके साथ मारपीट की जाती थी और कई मामलों में उसे बंधक बनाकर रखा जाता था।
एडीशनल डीसीपी आदित्य सिंह ने बताया कि फिलहाल इस गैंग के दो सदस्य ही पुलिस की गिरफ्त में आए हैं, लेकिन इनके नेटवर्क का फैलाव अंतरराष्ट्रीय स्तर तक है। प्राथमिक जांच में पता चला है कि गिरोह के कई अन्य सदस्य विदेशों में सक्रिय हैं, जो भारत से भेजे गए युवाओं को अपने कब्जे में लेकर विभिन्न ठग गिरोहों को बेच देते हैं। प्रति युवक की कीमत करीब 3,500 अमेरिकी डॉलर तय की जाती थी, यानी लगभग तीन लाख रुपये से अधिक में एक भारतीय युवक को बेचा जाता था। आतिफ खान और अजय शुक्ला ने पूछताछ में यह स्वीकार किया है कि वे अब तक दर्जनों युवाओं को इस तरह ठग गिरोहों को बेच चुके हैं।
पुलिस अधिकारियों का कहना है कि इस गैंग के निशाने पर खासतौर पर वे युवा रहते हैं जो लंबे समय से बेरोजगार हैं और नौकरी की तलाश में सोशल मीडिया या ऑनलाइन पोर्टल्स पर सक्रिय रहते हैं। ऐसे युवाओं को यह गैंग नकली जॉब वेबसाइटों और ऑनलाइन विज्ञापनों के माध्यम से फंसाता था। उन्हें बताया जाता था कि विदेश में काम करने के लिए कंपनी वर्क वीजा, रहने की सुविधा और अच्छा वेतन देगी। जब कोई युवक तैयार हो जाता था, तो उससे पासपोर्ट, फोटो और कुछ पैसे जमा कराए जाते थे। इसके बाद वीजा की फर्जी प्रक्रिया दिखाकर उन्हें विदेश भेज दिया जाता था, जहां हकीकत का पता चलता था।
आदित्य सिंह ने बताया कि पकड़े गए आरोपियों से पूछताछ जारी है और पुलिस यह पता लगाने में जुटी है कि अब तक कितने युवाओं को इस जाल में फंसाया गया है। जांच एजेंसियां यह भी खंगाल रही हैं कि यह गिरोह किन देशों तक सक्रिय है और इनके संपर्क में कौन-कौन से विदेशी एजेंट हैं। संभावना जताई जा रही है कि यह नेटवर्क कंबोडिया, थाईलैंड, लाओस और म्यांमार जैसे देशों में फैला हुआ है, जहां भारतीय, नेपाली और फिलीपीन नागरिकों को भी इसी तरह के जाल में फंसाया गया है।
पुलिस अधिकारियों ने लोगों से अपील की है कि वे किसी भी विदेशी नौकरी के प्रस्ताव की सत्यता की जांच किए बिना उस पर भरोसा न करें। सोशल मीडिया या ईमेल के माध्यम से आने वाले ऐसे प्रस्तावों से सतर्क रहें और किसी एजेंट या वेबसाइट को पैसे भेजने से पहले उसकी वैधता अवश्य परखें। इस पूरे मामले से यह साफ हो गया है कि बेरोजगारी और विदेशी नौकरी के लालच का फायदा उठाकर अंतरराष्ट्रीय गैंग भारतीय युवाओं को आधुनिक गुलामी और साइबर अपराधों में धकेल रहे हैं।








