
सैदपुर : बस्ती के मोहल्ला पूरब में हर साल की तरह इस साल भी जमीअत अहले हदीस की युवा इकाई अंजुमन-ए-इसलाह-ए-मुस्लेमीन सैदपुर की निगरानी में इसलाह-ए-मुआशरा के टॉपिक पर एक भव्य जलसे का आयोजन किया गया। यह जलसा कई वर्षों से लगातार आयोजित किया जा रहा है और इसका उद्देश्य समाज में इस्लामी तालीमात के ज़रिए सुधार और जागरूकता फैलाना है।
कार्यक्रम की शुरुआत तिलावत-ए-कुरआन पाक से हुई, जिसे मौलाना सज्जाद हुसैन, इमाम मस्जिद अहले हदीस सैदपुर ने पेश किया। इसके बाद फ़ज़ीलतुल शेख मोहम्मद शमीम सल्फी बदायूंनी ने “कुरआन से उम्मत की ग़फ़लत” विषय पर रोशनी डालते हुए बताया कि आज मुसलमानों की गिरावट की सबसे बड़ी वजह कुरआनी हिदायतों से दूरी है। उन्होंने कुरआन और सुन्नत पर अमल करने की अहमियत पर बल दिया।
इस बार जलसे का ख़ास टॉपिक “बाप की विरासत में लड़की का हक़” रखा गया, जिस पर फ़ज़ीलतुल शेख सरफराज फैज़ी साहब (मुंबई) ने बड़े ही अंदाज़ और दिलचस्प अंदाज में बयान फरमाया। उन्होंने बताया कि इस्लाम ने औरतों को वो हक़ दिए हैं जो दुनिया के किसी और मज़हब ने नहीं दिए। उन्होंने कुरआन की रोशनी में स्पष्ट किया कि बेटी का बाप की विरासत में पूरा हक़ है और उसे वंचित रखना शरीअत के खिलाफ़ है।
कार्यक्रम की सदारत फ़ज़ीलतुल शेख रज़ा उल्लाह अब्दुल करीम मदनी ने की, जिन्होंने “अहले बैत के फ़ज़ाइल और हक़ूक़” पर बयान फरमाते हुए बताया कि अहले बैत का सम्मान और उनके हक़ की अदायगी हर मुसलमान का फर्ज़ है। उन्होंने इस्लाम में अहले बैत की अहमियत को विस्तार से समझाया।
जलसे की निज़ामत हाफ़िज़ सज्जाद उस्मानी, इमाम मस्जिद अहले हदीस सैदपुर ने की, जिन्होंने पूरे कार्यक्रम को बड़ी खूबसूरती से आगे बढ़ाया। जलसे में इलाक़े के अलावा हतरा, बिसौली, बदायूं, सहसवान, बरेली और अन्य जगहों से बड़ी संख्या में उलमा और मेहमान हज़रत तशरीफ़ लाए।
कार्यक्रम के आखिर में मुल्क और क़ौम की तरक़्क़ी, अम्नो-अमान और भाईचारे के लिए ख़ास दुआ की गई। जलसे के बाद शिरकत करने वाले लोगों ने बताया कि ऐसे प्रोग्राम समाज में सुधार और एकता का पैग़ाम देते हैं।
रिपोर्ट : ज़ीशान सिद्दीकी, सैदपुर







